सात सुरों से मिलकर बनती
ईश्वर की सुंदर प्रतिमा
हरेक सुर से रोज़ निकलती
एक एक नई चेतना
सा में है भरी सादगीरे से रेशमी तन हैगा से गायन और नृत्यमॉ से ममता भरा मन हैसात सुरों….
प से परियों सी चपलता
ध से धरती का धैर्य
नी से निसर्ग की कोमलता
सा से सारे जहाँ का दर्द
सात सुरों …
Written Poem by
Dr. Sangeeta N. Srivastava