कैसे छूट गए हम पीछे ???
सोने की चिड़िया कहला कर,
जिस धरती को दुनिया पूजे,
मन मेरा अक्सर ये सोचे ,
कैसे छूट गए हम पीछे ?
क्या टैगोर कम थे शेक्स्पीयर से ?
या नालंदा कम आक्सफ़ोर्ड से ?
क्यों नहीं जानते लोग आम और ख़ास
नाम कबीर, रहीम या कालिदास ?
जिस भारत में जन्म हुआ था,
योग साधना और विज्ञान का,
जिस धरती पर था गूंजा
राग रहीम और मीरा का ।
इस देश ने दिया विश्व को,
शून्य और अंतरिक्ष का ज्ञान,
जहाँ संस्कृति और अध्यात्म की,
सबसे पहले हुई पहचान ।
जहाँ आज भी कृष्ण विराजे,
स्वयं हमारी आराधना में,
जहाँ आज भी हर हृदय में,
बसते ईश्वर हर विद्या में ।
क्यूँ इस देश की युवा पीढ़ी को,
प्रेम नहीं है अपनी धरा से ,
देश की प्राचीनता नहीं प्यारी,
प्रेम नहीं अपने मूल्यों से।
जब आज हमारे अध्यात्म व ज्ञान की,
धूम मची है दुनिया में,
जब आज हमारा योग और विज्ञान
अपनाया जाता है हर देश में।
तब क्यों हमारी युवा पीढ़ी को,
गर्व नहीं है अपनो पर?
क्यों वो भाग रहे बेसिर पैर,
पाश्चात्य क़दमों नक्शो पर?
सारी दुनिया देख रही है,
भारत भविष्य के सपने ऊँचे,
अध्यात्म व विज्ञान से सज्जित,
कैसे छूट गए हम पीछे?
अपनी प्राचीन संस्कृति को परखो,
आधुनिक युग में भी जो है जीवित,
अपनाओ इस धरोहर को तुम,
पाओ अपना ध्येय जो लक्षित।
जागो देश के तुम कर्णधारो,
ज़रूरत आज तुम्हारी है,
तुम हो हमारा भविष्य ना हारो,
जागृति ही जीत हमारी है।