रुतबा” तो.. खाँमोशियों का होता है.. ”
अल्फ़ाज़” का क्या ?
वो तो  बदल जाते हैं,
अक्सर “हालात” देखकर…!!!

ख़ामोशियों का क्या है
बस देखते जाना है
ना डर है बेरुख़ी का
ना ख़ौफ़ बदनामी का

ये लफ़्ज़ ही है जो की
बेख़ौफ़ अदाओ से
या दिल को जीत पाए
या तोड़े हर तमन्ना

ख़ामोश जो हम हो जायें
मिट जाए सारे शिकवे
और फिर शुरू हो मिन्नते
के कुछ तो बोल जाए

अल्फ़ाज़ ही है सांसें
अल्फ़ाज़ ही है जन्नत
कुछ सोच और समझ कर
गर उनको हम निभाए

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